फेक न्यूज: एजेंडा या चरित्रहनन की पत्रकारिता

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फोटो लेखक अजय शुक्ल की है

पल्स : अजय शुक्ल

इस वक्त “फेक न्यूज” पर चर्चा गर्म है। यह चर्चा निर्रथक नहीं है। चिंता काविषय है। तकनीक का विकास होने के साथ ही उसका दुरुपयोग भी होनास्वाभाविक है। फेक न्यूज का भी यह माध्यम बन रहा है। सोशल मीडिया कीअपनी कोई जवाबदेही नहीं होने से कोई भी कुछ भी पोस्ट करता है। “शिक्षितटाइप के जाहिल” लोग सच जाने बगैर उसे फारवर्ड करते हैं। यह फारवर्डिंग कहींन कहीं गलत और भ्रामक स्थिति उत्पन्न करती है, जो विध्वंसक हो जाती है।फेक न्यूज किसी का चरित्रहनन करती हैं, तो किसी के एजेंडे को पूरा करती हैंमगर इसका नुकसान आमजन को होता है।

आप सोचेंगे कि आखिर हम फेक न्यूज पर चर्चा क्यों कर रहे हैं, तो बताते चलें कि मौजूदा समय में भारतीय मीडिया सवालों के घेरे में है। आखिर भारतीय मीडिया ने ऐसा क्या कर दिया कि उस पर सवालिया निशान लग रहे हैं?

सच यह है कि भारतीय मीडियाअभी भी भरोसेमंद और सच के ज्यादा करीब है। विश्वस्तर पर सर्वे करके रैंकिंग तैयार करने वाली संस्थाओं का यह मानना है। विश्वसनीयता के मामलेमें भारत का मीडिया विश्व का तीसरा सबसे भरोसेमंद मीडिया है।

सांप्रदायिकता को भड़काने, किसी नेता या विशिष्ट व्यक्ति का चरित्रहनन करकेसियासी फायदा उठाने के लिए इस तरह के मीडिया का इस्तेमाल बढ़ा है। इसीकड़ी में हमें यूपी का खनन घोटाला भी दिखता है। घोटाले का जो भीआपराधिक चरित्र है, उसकी जांच देश की सबसे प्रतिष्ठित जांच एजेंसी सीबीआईकर रही है। जो भी होगा सामने आएगा। देखने को मिला कि कुछ मीडियापोर्टल में कुछ विशिष्ट लोगों के नाम इसमें उछाले गये, जिनका सीबीआई कीजांच में कोई जिक्र नहीं है।

यही नहीं मनगढंत कहानियां रचकर एजेंडे के तहत उन लोगों पर दाग लगाने का काम किया गया, जिनका इससे दूर-दूर तक कोई वास्ता ही नहीं है। हमने जब ऐसी खबर एक पोर्टल पर देखी तो सीबीआई केएक अफसर मित्र और हाईकोर्ट के एक जज से पूरा मामला जाना। उन्होंनेबताया कि न तो सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट में ऐसा कोई तथ्य है और नहीं हाईकोर्ट के संज्ञान में ऐसी कोई शिकायत आई है। हमने लखनऊ के मीडिया मेंपता किया तो जनकारी मिली कि सरकार में पद पाये. सौजन्य आज समाज

(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)

ajay.shukla@itvnetwork.com

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