
(ब्यूरो चीफ)
चंडीगढ़ 8 अक्तूबर 2019। मात्र एक दिन पहले ही 7 अक्तूबर 1953 की वह तारीख निकल गई, जिस दिन शहर को बसाने के लिए देश के प्रथम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने सेक्टर-9 के लिल्ली पार्क मेंं आधारशिला रखी थी। आज ऐसा लगता है कि चंडीगढ़ खुद ही लोगों से चीख-चीखकर पूछ रहा है कि हमारी वर्षगांठ को किसने मिट्टी में मिला दिया। इसके लिए कौन है जिम्मेदार, जिसने वर्षगांठ को इतिहास के पन्नों में दफना दिया। शायद इसका जवाब शहर में चैन से जीवन बिताने वालों के पास नहीं है। क्योंकि यहां रहने वाले लोग सिर्फ उपभोक्ता बनकर आए और उपभोग करने में सब कुछ भूल गए। वर्षगांठ के नाम पर किसी ने रस्म अदायगी तक नहीं की। इस शहर को बसाने के लिए प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल ने वर्ष 1952 के जनवरी में घोषणा की थी। जिसकी वर्षगांठ आज हमसब भूलाकर बैठे हैं।
वर्षगांठ मनाते होते
इस संबंध में पूर्व केंद्रीय मंत्री हरमोहन धवन का कहना है कि ब्यूरोक्रेट्स ने शहर की पहचान ही खत्म कर दी। यूटी में हमेशा ही बड़े अधिकारी बाहरी राज्यों से आए। उन्होंने कहा कि शहर की स्थापना को लेकर जनता में ऐसी बातें आने ही नहीं दी कि चंडीगढ़ की वर्ष वर्षगांठ भी मनाई जाए। धवन के अनुसार चंडीगढ़ के पास मजबूत राजनीतिक ढांचा नहीं है। अन्य राज्यों में राजनीतिक ढांचा विधानसभा, लोकसभा है। यदि इसी प्रकार से चंडीगढ़ के पास राजनीतिक व्यवस्था होती तो निश्चित रूप से आज यानी 7 अक्टूबर को चंढीगढ़ के लिए वर्षगांठ मनाते होते। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि नेहरू जी ने जिस सोच के साथ इस शहर को बनाया था। उसके ठीक विपरीत शहर की हालत बद से बदतर होती चली जा रही है। धवन ने कहा कि वह वर्ष 1960 में शहर आए थे, जबकि वर्ष 1966 में ही यूटी बन गया था। तब और अब शहर में बहुत फर्क है। शहर की सड़कें जर्जर, शिक्षा का बुरा हाल, बिजली पानी की स्थिति दयनीय, स्वच्छता में फिसड्डी और भी बहुत कुछ। अब तो शहर का भगवान ही मालिक है।

शहर के बारे में पूरी जानकारी रखने वाले पूर्व मेयर सुभाष चावला का कहना है कि यह विडम्बना ही है कि चंडीगढ़ के लिए वर्षगांठ नहीं मनाई जाती है। पूर्व मेयर चावला बताते हैं कि जब वर्ष 2003 में मेयर बने तो प्रयास किया था कि सालाना नियमित वर्षगांठ मनाने की व्यवस्था की जाए। इसके बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिली। इसका मुख्य कारण यह मानते हैं कि शहर में 70 से 80 प्रतिशत आबादी बाहर के राज्यों से आती है। उनका शहर के वर्षगांठ से कोई दिली वास्ता नहीं रहता है। चावला ने बताया कि ज्वाइंट पंजाब की राजधानी लाहौर थी। वि•ााजन के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पंजाब की राजधानी बनाने की दृष्टि के साथ चंडीगढ़ को आधुनिक भारत की प्रगति का प्रतीक बनाने के लिए इस शहर को ली-कार्बूजिए से बनवाया था। यह शहर सिर्फ पांच लाख लोगों के लिए बसाया गया था। इसी आबादी के हिसाब से ही पानी, बिजली, सड़कों, शिक्षा सहित अन्य मूलभूत सुविधाएं दी गई थी। फिलहाल शहर 15 लाख आबादी को झेलने के लिए मजबूर है। पूर्व मेयर चावला के अनुसार शहर लिटेÑसी में पहले नंबर पर, जबकि केरल दूसरे स्थान पर था। आज शहर हर मामले में पीछे लुढ़कता जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि चंडीगढ़ की आकृति दिल, हाथ और उसकी रेखाओं की तरह है। हाथ की रेखाओं के अनुसार ही शहर की सड़कें व गलियों की बनावट है। इस प्रकार से शहर के लिए वर्ष गांठ का न मनाया जाना दुर्•ााग्यपूर्ण है।
अफसोसजनक
समाज सेवी सेकेंड इंनिंग के चेयरमैन आरके गर्ग ने भी चंडीगढ़ के लिए स्थापना दिवस नहीं मनाने को अफसोसजनक बताया। उन्होंने कहा कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू शहर को माडर्न बनाने की घोषणा वर्ष 1952 में की थी। वहीं चंडीगढ़ बसाने के लिए प्रथम राष्टÑपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने वर्ष 1953 में आधारशिला रखी। आज के नए जेनरेशन को सिर्फ लि-कार्बूजिए के बारे में तो पता है, लेकिन जिसके नाम पर शहर बसाया गया, जिसने शहर को बसाने के लिए सपना देखा, जिस व्यक्ति ने आधारशिला रखीं उसके बारे में अधिकत लोगों को कुछ नहीं पता। इस प्रकार से चंडीगढ़ को बनाने की सारी जानकरी इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह गई। सेकेंड इंनिंग के चेयरमैन गर्ग ने पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहा कि एक समय वह भी था, जब लोग चैन की नींद लेने शहर में रहते थे। खुली और बिना भीड़ भाड़ वाली सड़कें, स्वच्छ हवा, निर्बाध बिजली और पानी आज कहां गए। आज सिर्फ और सिर्फ यादें ही रह गई। उन्होंने कहा कि वर्ष 1966 में यूटी बन गया। इसके बाद शहर का तब और बुरा हाल हो गया, जब वर्ष 2000 में पंजाब में आतंकवाद की शुरूआत हुई। शहर में चीफ कमिश्नर की जगह प्रशासक ने ले लिया, जो पंजाब के गवर्नर होते हैं। इस प्रकार से राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण जवाहर लाल नेहरू के सपनों को मटियामेट कर दिया गया।
